Shringar Ras (श्रंगार रस)
इसका स्थाई भाव रति होता है नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस कि अवस्था में पहुँच जाता है तो वह श्रंगार रस कहलाता है इसके अंतर्गत सौन्दर्य, प्रकृति, सुन्दर वन, वसंत ऋतु, पक्षियों का चहचहाना आदि के बारे में वर्णन किया जाता है।
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श्रृंगार रस की परिभाषा (Shringar ras ki Paribhasha)
श्रृंगार रस (Shringar Ras) में नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस के अवस्था में पहुंच जाता है तो वह श्रृंगार रस (Shringar Ras) कहलाता है। इसके अंतर्गत वसंत ऋतु, सौंदर्य, प्रकृति, सुंदर वन, पक्षियों श्रृंगार रस के अंतर्गत नायिकालंकार ऋतु तथा प्रकृति का वर्णन भी किया जाता है। श्रृंगार रस (Shringar Ras) को रसराज या रसपति भी कहा जाता है।श्रृंगार रस के उदाहरण-
तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।झके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये।। Shringar Ras बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय ।
सौंह करै, भौंहनु हँसे, देन कै नटि जाय ॥
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श्रृंगार रस के भेद-
श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगारसंयोग श्रृंगार-
जब नायक नायिका के परस्पर मिलन, स्पर्श, आलिंगन, वार्तालाप आदि का वर्णन होता है तब वहां पर संयोग श्रृंगार रस होता है। Shringar RasShringar Ras Simple Example in Hindi-
संयोग श्रृंगार रस का उदाहरण-
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय,सौंह करे भौंहन हंसे देन कहे नटि जाय!! थके नयन रघुपति छवि देखे।
पलकन्हि हु परिहरि निमेखे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।। Shringar Ras राम के रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं ।
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।
वियोग श्रृंगार रस-
जहां पर नायक-नायिका का परस्पर प्रबल प्रेम हो लेकिन मिलन न हो अर्थात नायक-नायिका के वियोग का वर्णन हो वहां पर वियोग रस होता है। वियोग श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति होता हैवियोग श्रृंगार रस का उदाहरण-
उधो, मन न भए दस बीस।एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
इन्द्री सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥ Shringar Ras
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥ पुनि वियोग सिंगार हूँ दीन्हौं है समुझाइ।
ताही को इन चारि बिधि बरनत हैं कबिराइ॥ इक पूरुब अनुराग अरु दूजो मान विसेखि।
तीजो है परवास अरु चौथो करुना लेखि॥ इन काहू सेयो नहीं पाय सेयती नाम।
आजु भाल बनि चहत तुव कुच सिव सेयो बाम॥ बेलि चली बिटपन मिली चपला घन तन माँहि।
कोऊ नहि छिति गगन मैं तिया रही तजि नाँहि॥
Shringar Ras
रस के भेद
रस 9 प्रकार के होते हैं परन्तु वात्सल्य एवं भक्ति को भी रस माना गया हैं।
१- श्रंगार रस Shringar Ras
२- हास्य रस Hasya Ras
३- वीर रस Veer Ras
४- करुण रस Karun Ras
५- शांत रस Shant Ras
६- अदभुत रस Adbhut Ras
७- भयानक रस Bhayanak Ras
८- रौद्र रस Raudra Ras
९- वीभत्स रस Vibhats Ras
१०- वात्सल्य रस Vatsalya Ras
११- भक्ति रस Bhakti Ras
उदाहरण:
Shringar Ras ke Udaharan
1.दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई
मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई
2.
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरा पति सोई
3.
बसों मेरे नैनन में नन्दलाल
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल
4.
अरे बता दो मुझे कहाँ प्रवासी है मेरा
इसी बावले से मिलने को डाल रही है हूँ मैँ फेरा
5.
कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात
भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात
रस के प्रकार/भेद
क्रम | रस का प्रकार | स्थायी भाव |
---|---|---|
1 | श्रृंगार रस | रति |
2 | हास्य रस | हास |
3 | करुण रस | शोक |
4 | रौद्र रस | क्रोध |
5 | वीर रस | उत्साह |
6 | भयानक रस | भय |
7 | वीभत्स रस | जुगुप्सा |
8 | अद्भुत रस | विस्मय |
9 | शांत रस | निर्वेद |
10 | वात्सल्य रस | वत्सलता |
11 | भक्ति रस | अनुराग |
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