पारिस्थितिकी के नियम (Paristhitiki Ke Niyam)

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की क्रियाशीलता कुछ नियमों पर आधारित होती है। इन नियमों के प्रतिपादक बैरी कोमोनर (Barry Commoner) थे। Paristhitiki Ke Niyam निम्न प्रकार हैं-

1. पारिस्थितिकी का प्रथम नियम

पारिस्थितिकी के प्रथम नियम के अनुसार, पारितन्त्र में प्रत्येक जीव एक-दूसरे से सम्बन्धित होती है (Everything is connected to everything)। उनका सम्बन्ध पदार्थ अथवा ऊर्जा के माध्यम से स्थापित होता है। जैसे— मौसम के तापमान में वृद्धि के फलस्वरूप शैवालों की तेजी से वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप तन्त्र में अजैविक पोषकों की आपूर्ति घट जाती है। इससे शैवाल एवं पोषण चक्र में असंतुलन पैदा होता है। इसे सन्तुलित करने हेतु तन्त्र के अन्य प्रक्रम क्रियाशील हो जाते हैं और पुनः पारिस्थितिकीय सन्तुलन कायम हो जाता है।

2. पारिस्थितिकी का द्वितीय नियम

पारिस्थितिकी के द्वितीय नियम के अनुसार, पारितन्त्र में प्रत्येक वस्तु को कहीं न कहीं जाना है (Everything must go somewhere)। प्रत्येक प्राकृतिक तन्त्र में, यदि किसी एक तन्त्र द्वारा कोई वस्तु निकाल दी जाती है, तो उसी वस्तु को दूसरा तन्त्र अपने भोजन के लिए प्रयोग कर लेता है। जैसे— प्राणी कार्बन डाइ-ऑक्साइड को अपने श्वसन के अपशिष्ट के रूप में त्याग देता है, परन्तु यही कार्बन डाइ-ऑक्साइड हरित पादपों के लिए आवश्यक पोषक बन जाती है।

3. पारिस्थितिकी का तृतीय नियम

पारिस्थितिकी के तृतीय नियम के अनुसार माना गया है कि, यहाँ कुछ भी मुफ्त में उपलब्ध नहीं है (There is no such thing as a free lunch)। अत: किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त करने के लिए तन्त्र में कुछ-न-कुछ अवश्य प्रदान करना पड़ता है अर्थात् ऊर्जा की प्राप्ति के लिए ऊर्जा लगानी पड़ती है।

4. पारिस्थितिकी का चतुर्थ नियम

पारिस्थितिकी के चतुर्थ नियम के अनुसार, प्रकृति सर्वोत्तम जानती है (Nature knows best)। इस नियम के अनुसार, पारितन्त्र में मानव द्वारा किया गया कोई भी परिवर्तन उसके अस्तित्व के लिए विनाशकारी साबित होगा।

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