Samvidhan Ki Prastavana : प्रिय मित्रों आज हम आपको भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में विस्तार से बताएंगे। आज हमने इस लेख में भारतीय संविधान की प्रस्तावना एवं उसका अर्थ इत्यादी के बारे आपके लिए विस्तार से जानकारी दी है। हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आपको Samvidhan Ki Prastavna की पूर्ण जानकारी के बारे में पता लग जाएगा।
प्रत्येक संविधान के प्रारंभ में सामान्य रूप से एक प्रस्तावना होती है जिसके द्वारा संविधान के प्रमुख उद्देश्यों को भली-भांति समझा जा सकता है। भारतीय संविधान की उद्देशिका (प्रस्तावना) अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उद्देशिका को संविधान का सार माना जाता है और इसे संविधान का आत्मा भी कहा जाता हैं।
नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया। संविधान के 42वें संशोधन (१९७६) द्वारा यथा संशोधित यह उद्देशिका निम्न प्रकार है।
Samvidhan Ki Prastavana
प्रस्तावना में रखा अंकित शब्द (समाजवादी, पंथनिरपेक्ष तथा अखंडता) मूल संविधान की प्रस्तावना में नहीं थे। इन्हें 42 वे. संवैधानिक संशोधन 1976 के आधार पर प्रस्तावना में जोड़ा गया है।
वास्तव में प्रस्तावना संविधान की कुंजी तथा संविधान का सबसे श्रेष्ठ अंग है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुब्बा राव ने कहा है “प्रस्तावना संविधानके आदर्शों आकांक्षाओं को बताती है।”
Preamble Of Indian Constitution In Hindi
- संविधान की प्रस्तावना को संविधान की कुंजी कहा जाता है।
- प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा- “हम भारत के लोग…….. इस संविधान को” अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। ” भारतीय लोगों की सर्वोच्च संप्रभुता का उद्घोष करते हैं।
- प्रस्तावना को संविधान का आत्मा कहा जाता है।
- प्रस्तावना को न्यायालय में परिवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मदन गोपाल, 1957 के निर्णय में घोषित किया गया।
- प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों को केंद्र बिंदु अथवा स्रोत “भारत के लोग” ही हैं।
- 6-बेरुबाड़ी वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना। इसलिए विधायिका प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती। परंतु सर्वोच्च न्यायालय के केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद, 1973 में कहा की प्रस्तावना संविधान का अंग है। इसलिए विधायिका उसमें संशोधन कर सकती है।
- केशवानंद भारती वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय में मूल ढांचे का सिद्धांत दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढांचा माना।
- संसद संविधान की मूल ढांचा में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है, स्पष्टत संसद वैसा संशोधन कर सकती है, जिससे मूल ढांचा का विस्तार व मजबूतीकरण होता है।
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा इसमें “समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और राष्ट्र की अखंडता” शब्द जोड़े गए।
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भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Indian Preamble In Hindi
भारतीय संविधान की उद्देशिका :-
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा,
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए,
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का निर्माण
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का निर्माण :- भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से ली गई है। सर्वप्रथम अमेरिका ने संविधान में प्रस्तावना को शामिल किया था जिसके बाद इसे कई देशों ने अपने-अपने संविधान में शामिल किया।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना जवाहरलाल नेहरू द्वारा बनाए गए उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है।
भारतीय संविधान में प्रस्तावना को भारतीय संविधान का परिचय पत्र कहा जाता है। संविधान विशेषज्ञ नानी पालकीवाला ने संविधान की प्रस्तावना को सविधान का परिचय पत्र कहा था।
संविधान की प्रस्तावना में संशोधन
संविधान की प्रस्तावना में संशोधन :- सन 1976 में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें संशोधन करके 3 नए शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का मुख्य उद्देश्य भारत के सभी नागरिकों के अधिकार सुरक्षित करती है तथा उनके लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को भी सुरक्षित करती है।
संविधान की प्रस्तावना के घटक
प्रस्तावना के चार घटक इस प्रकार हैं :-
1. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि संविधान के अधिकार का स्रोत भारत के लोगों के साथ निहित है।
2. यह इस बात की घोषणा करता है कि भारत एक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राष्ट्र है।
3. यह सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करता है तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भाईचारे को बढ़ावा देता है।
4. इसमें उस तारीख (26 नवंबर 1949) का उल्लेख है जिस दिन संविधान को अपनाया गया था ।
प्रस्तावना में उल्लेखित मुख्य शब्दों के अर्थ
प्रस्तावना में उल्लेखित मुख्य शब्दों के अर्थ :-
- हम भारत के लोग-
- इसका तात्पर्य यह है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च संप्रभु है, अतः भारतीय जनता को जो अधिकार मिले हैं वही संविधान का आधार है अर्थात् दूसरे शब्दों में भारतीय संविधान भारतीय जनता को समर्पित है।
- संप्रभुता-
- इस शब्द का आशय है कि, भारत ना तो किसी अन्य देश पर निर्भर है और ना ही किसी अन्य देश का डोमिनियन है। इसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं है और यह अपने आंतरिक और बाहरी मामलों का निस्तारण करने के लिए स्वतंत्र हैं।
- समाजवादी-
- समाजवादी शब्द का आशय यह है कि ‘ऐसी संरचना जिसमें उत्पादन के मुख्य साधनों, पूँजी, जमीन, संपत्ति आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य हो।
- पंथनिरपेक्ष-
- ‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में उल्लेख नहीं किया गया था तथापि इसमें कोई संदेह नहीं है कि, संविधान के निर्माता ऐसे ही राज्य की स्थापना करने चाहते थे। इसलिए संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) जोड़े गए। भारतीय संविधान में पंथनिरपेक्षता की सभी अवधारणाएँ विद्यमान हैं अर्थात् हमारे देश में सभी धर्म समान हैं और उन्हें सरकार का समान समर्थन प्राप्त है।
- लोकतांत्रिक-
- संविधान की प्रस्तावना में लोकतांत्रिक शब्द का इस्तेमाल वृहद् रूप से किया है, जिसमें न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है। व्यस्क मताधिकार, समाजिक चुनाव, कानून की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, भेदभाव का अभाव भारतीय राजव्यवस्था के लोकतांत्रिक लक्षण के स्वरूप हैं।
- गणतंत्र-
- प्रस्तावना में ‘गणराज्य’ शब्द का उपयोग इस विषय पर प्रकाश डालता है कि दो प्रकार की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ‘वंशागत लोकतंत्र’ तथा ‘लोकतंत्रीय गणतंत्र’ में से भारतीय संविधान के अंतर्गत लोकतंत्रीय गणतंत्र को अपनाया गया है।
- गणतंत्र में राज्य प्रमुख हमेशा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित समय के लिये चुनकर आता है। गणतंत्र के अर्थ में दो और बातें शामिल हैं।
- पहली यह कि राजनीतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति जैसे राजा के हाथ में होने के बजाय लोगों के हाथ में होती हैं।
- दूसरी यह कि किसी भी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की अनुपस्थिति। इसलिये हर सार्वजनिक कार्यालय बगैर किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के लिये खुला होगा।
- स्वतंत्रता-
- यहाँ स्वतंत्रता का तात्पर्य नागरिक स्वतंत्रता से है। स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल संविधान में लिखी सीमाओं के भीतर ही किया जा सकता है। यह व्यक्ति के विकास के लिये अवसर प्रदान करता है।
- न्याय-
- न्याय का भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख है, जिसे तीन भिन्न रूपों में देखा जा सकता है- सामाजिक न्याय, राजनीतिक न्याय व आर्थिक न्याय।
- सामाजिक न्याय से अभिप्राय है कि मानव-मानव के बीच जाति, वर्ण के आधार पर भेदभाव न माना जाए और प्रत्येक नागरिक को उन्नति के समुचित अवसर सुलभ हो।
- आर्थिक न्याय का अर्थ है कि उत्पादन एवं वितरण के साधनों का न्यायोचित वितरण हो और धन संपदा का केवल कुछ ही हाथों में केंद्रीकृत ना हो जाए।
- राजनीतिक न्याय का अभिप्राय है कि राज्य के अंतर्गत समस्त नागरिकों को समान रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो, चाहे वह राजनीतिक दफ्तरों में प्रवेश की बात हो अथवा अपनी बात सरकार तक पहुँचाने का अधिकार।
- समता-
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना हर नागरिक को स्थिति और अवसर की क्षमता प्रदान करती हैं जिसका अभिप्राय है समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकार की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने की उपबंध।
- बंधुत्व–
- इसका शाब्दिक अर्थ है- भाईचारे की भावना। प्रस्तावना के अनुसार बंधुत्व में दो बातों को सुनिश्चित करना होगा। पहला व्यक्ति का सम्मान और दूसरा देश की एकता और अखंडता। मौलिक कर्तव्य में भी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करने की बात कही गई है।